Supreme Court On Streedhan: एक ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि विवाह के समय महिला को उसके माता-पिता द्वारा दिया गया स्त्रीधन केवल उस महिला की संपत्ति होती है। इस पर किसी और का अधिकार नहीं हो सकता, चाहे वह महिला के ससुराल वाले हों या उसके अपने माता-पिता। “Supreme Court On Streedhan” के इस फैसले ने महिलाओं के अधिकारों को मजबूती से समर्थन दिया है।
स्त्रीधन: एक महिला का अडिग अधिकार
स्त्रीधन क्या है? इसे केवल सोने-चांदी के गहनों या शादी में दिए गए उपहारों तक सीमित न समझें। स्त्रीधन वह सम्पत्ति है, जो एक महिला के जीवन में किसी भी महत्वपूर्ण मौके पर उसे दी जाती है—जैसे शादी के समय, संतान के जन्म पर, या फिर कोई विशेष अवसर हो। इसमें गहने, जमीन-जायदाद, नकदी, या कोई और मूल्यवान वस्तु हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में दोहराया कि इन सभी चीजों पर केवल उस महिला का अधिकार होता है।
इस संदर्भ में, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि “Supreme Court On Streedhan” के अंतर्गत यह अधिकार इतना पुख्ता है कि न तो महिला के ससुराल वाले और न ही उसके माता-पिता इसे वापस मांग सकते हैं, यहां तक कि तलाक के बाद भी।
क्या है मामला?
यह मामला एक महिला के पिता, पी. वीरभद्र राव द्वारा शुरू हुआ था। उन्होंने अपनी बेटी की शादी के तीन साल बाद उसके ससुराल वालों के खिलाफ हैदराबाद पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जिसमें उन्होंने बेटी के स्त्रीधन को वापस करने की मांग की। यह मामला तब और पेचीदा हो गया जब ससुराल वालों ने इस FIR को रद्द करने के लिए तेलंगाना हाईकोर्ट में अपील की, लेकिन उनकी अपील खारिज कर दी गई। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस संजय करोल की बेंच ने यह फैसला सुनाया।
कोर्ट ने कहा, “इस मामले में, पिता ने 20 साल बाद शिकायत की है और स्त्रीधन के दावे का कोई ठोस प्रमाण भी नहीं है। यहां तक कि तलाक के दौरान भी स्त्रीधन का कोई उल्लेख नहीं किया गया था।”
Supreme Court On Streedhan: स्त्रीधन पर केवल महिला का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने सख्त शब्दों में कहा कि स्त्रीधन पर केवल उस महिला का अधिकार है। इसका मतलब यह है कि विवाह के दौरान महिला को जो भी उपहार, गहने, नकदी या अन्य सामान मिलता है, वह केवल और केवल उसकी संपत्ति है। यहां तक कि उसके माता-पिता भी उसे वापस नहीं मांग सकते।
यह फैसला महिलाओं के अधिकारों के संदर्भ में बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह स्पष्ट करता है कि विवाह के बाद भी स्त्रीधन की कानूनी स्थिति वही रहती है। चाहे वह महिला तलाकशुदा हो या विवाहित, उसकी संपत्ति उसके नियंत्रण में होती है, और कोई भी अन्य व्यक्ति उस पर दावा नहीं कर सकता।
न्यायालय का दृष्टिकोण: महिलाओं की संपत्ति का सम्मान आवश्यक
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि स्त्रीधन पर किसी भी तरह की दखलअंदाजी अवैध है। अदालत ने कहा, “यह महिला का अधिकार है कि वह अपने स्त्रीधन के बारे में सभी निर्णय खुद ले। इस संपत्ति का किसी और द्वारा उपयोग या उस पर दावा करना कानून के खिलाफ है।”
यह “Supreme Court On Streedhan” का निर्णय भारतीय समाज में महिलाओं के अधिकारों के प्रति एक मजबूत संदेश है। इस फैसले ने न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महिलाओं की स्थिति को मजबूत किया है, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया है कि उनके अधिकारों का सम्मान किया जाना अनिवार्य है।
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स्त्रीधन और भारतीय समाज
यह फैसला महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति और भी जागरूक करेगा। भारतीय समाज में स्त्रीधन का महत्व न केवल आर्थिक रूप से होता है, बल्कि यह महिलाओं की सुरक्षा और आत्मसम्मान का भी प्रतीक है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इस सामाजिक मान्यता को और भी सशक्त बनाता है कि एक महिला का स्त्रीधन उसकी निजी संपत्ति है, जो कि उसकी सुरक्षा के लिए है और इसे किसी भी परिस्थिति में उससे छीना नहीं जा सकता।
Supreme Court On Streedhan: महिलाओं के अधिकारों की जीत
यह सुप्रीम कोर्ट का फैसला एक मील का पत्थर है, जो महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। “Supreme Court On Streedhan” का यह निर्णय महिलाओं को यह विश्वास दिलाता है कि उनका अधिकार उनकी संपत्ति पर सुरक्षित है और इसे कोई उनसे छीन नहीं सकता। यह फैसला न्याय के प्रति विश्वास को और मजबूत करता है और समाज में महिलाओं की गरिमा को और ऊंचा उठाता है।
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